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पितृ दिवस पर विशेष: पिता- पुत्र से जुड़ी एक प्रेरक कहानी

दुनिया पुत्र का कर रही थी प्रशंसा, पिता ने दिखाया आईना…

अपनी खुशी को अपने अंदर दफन करके पिता अपने पुत्र को सदैव देखना चाहते हैं बेहतर…

हज़ारीबाग़:-एक कर्मकांडी पिता के पुत्र ने देश के नामचीन गुरुकुल से वैदिक शिक्षा ग्रहण कर लौटने के पश्चात अपने पिता के शिष्यों के लिए कर्मकांड करना शुरू किया। कम उम्र में उनके विद्वता और कर्मकांड की ख्याति दूर तलक तक होने लगी। पूरे क्षेत्र में वर्षों से सेवारत पिता से अधिक पुत्र के यश, कीर्ति का बखान सरेआम होने लगा। पुत्र की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। इससे पुत्र और उनकी माता एवं उनके परिजन बेहद प्रसन्न होते हैं लेकिन पिता अपने पुत्र के बारे लोगों से कहते हैं कि हमेशा आपलोग मेरे बेटे का झूठा तारीफ़ और प्रशंसा करते रहते l हैं वो तो अभी कुछ भी नहीं जानता। पिता लोगों के अलावे अपने परिवारजनों से भी यही बातें कहते हैं। बेहद प्रतिभावान पुत्र को इसकी भनक लग जाती है कई बार तो लोगों को यह कहते हुए पुत्र अपने पिता को खुद अपनी कानों से सुन लेता है। जिसके बाद बढ़ती लोकप्रियता और डिमांड वाले पुत्र को अपने पिता के प्रति ईर्ष्या और द्वेष का भावना होने लगता है। यह सिलसिला लगातार चलता है। एक तरह समाज में लोगों के द्वारा की जा रही वाहवाही से पुत्र फूले नहीं समाता है तो दूसरी ओर अपने ही पिता द्वारा कही जा रही बातें उसे ताने से कम नहीं लग रहें थे। पिता की बातें हरदम उसके कानों में गूंजते रहते और अंदर से जब भी अपने पिता को देखता अत्यन्त क्रोधित होने लगता था। पुत्र को अपने ही पिता के प्रति जलन और घुटन होने लगा। पिता के प्रति पुत्र का क्रोध इतना भयावह हो गया कि उसने अपने ही पिता को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान लिया और फिर एक दिन रात्रि में पिता के हत्या करने का मन बना लिया। रात्रि में जब पिता सो रहे थे तब एक तलवार लेकर पुत्र उनके कमरे के बाहर खड़ा हो गया की आज जब पिता टॉयलेट के लिए बाहर निकलेंगे तो उन्हें काट देंगे और हमें फिर कोई क्षेत्र में अतिलोकप्रिय होने से रोक नहीं सकेगा। जब पुत्र इस कुत्सित सोच के साथ पिता के कमरे के बाहर खड़ा था तभी उनकी मां ने पिता से सवाल पूछ लिया कि आपके बेटे का इतना नाम हो रहा है लेकिन आप कभी उसे अच्छा क्यों नहीं बोलते। पिता जवाब देते हैं कि जब मेरे बेटे का कोई बड़ाई करता तो मेरा सीना खुशी से फूल जाता है, हृदय गदगद और मन प्रसन्न हो जाता है लेकिन मुझे अपने बेटे को ओर आगे बढ़ाना है इसीलिए हम इसकी तारीफ नहीं करते हैं। ये बात सुनकर बाहर खड़ा पुत्र दंग रह जाता है और इसी बीच उनके पिता टॉयलेट के लिए दरवाजा खोलकर बाहर निकलते हैं तभी पुत्र उनके पैरों में गिर पड़ता है और फ़फ़ककर रोने लगता है और बोलता है कि आज हमसे बड़ा अपराध हो जाता फिर पिता अपने पुत्र को उठाकर सीने से लगा लेते है और उसे खूब दुलार करने लगते हैं। पिता- पुत्र का अद्भुत प्रेम यहां उद्गार होता है ।

इस कहानी से हमें सिख मिलता है कि पिता अपने सपने और इच्छाओं को मारकर हमारे अरमानों की पूर्ति के लिए हमेशा कोशिश करते हैं। हमें शिष्टाचार और नैतिकता की पाठ पढ़ाते हैं। अपनी खुशी को अपने अंदर दफन करके पिता अपने पुत्र को ओर बेहतर देखना चाहते हैं। बिना इज़हार किए हर पिता अपने पुत्र का सदैव भलाई देखना चाहते है। पिता हमेशा चाहते हैं कि उनका पुत्र उनसे काबिल बने और जब किसी पुत्र के अच्छे कार्यों और आचरण का बधाई उनके पिता के पास करते हैं वो पिता को अंदर से गुमान होता है लेकिन ऊपर से मोम बनकर पुत्र के समक्ष वो उद्गार नहीं करते ताकि उनके पुत्र ओर भी बेहतर प्रदर्शन कर सके। ये सच्चे चाह का समर्पण सिर्फ़ एक पिता में ही हो सकता है ।

रंजन चौधरी
सांसद मीडिया प्रतिनिधि,
हजारीबाग लोकसभा

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